शनिवार, 11 दिसंबर 2010

पाठशालाओं में मैदान का महत्व

भारत देश एक विशाल देश है और यहाँ बढ़ती आबादी एक चिंतित विषय है। इसकी वजह से हर जगह फ्लेट, सैरगाह, कोठि ईत्यादी का प्रमाण बढ़ता जा रहा है। यहाँ ज़मीन घटती जा रही है और हर जगह पर यातायात, पड़ाव, प्रदूषण की समस्याएं बढ़ती जा रही है।

अहमदाबाद एक बड़ा शहर बनने की कगार पर है, जहाँ कुल २३२३ पाठशालाए है (गुजरात रेवेनुए डिपार्टमेंट)। यह बयान किया गया है कि ५२ % पाठशालाओं में मैदान का आभाव है (इंडिया टूगेदर)। ब्रिटिश अध्ययन के मुताबिक लगभग ६० सें ८० % चोट बच्चों को पाठशाला के मैदान में लगती है (फाइनड अर्टिक्लेस)। मैदान बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। एक ऑस्ट्रलियन अध्ययन के मुताबिक यदि बच्चों को सह-पाठयक्रम गतिविधियों में शामिल नहीं किये जाने पर मानसिक ताण का शिकार बन जाते है और इस का प्रमाण ८.४ % है। (मेडिसिन नेट)

मैदान बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से बढ़ने का एक अच्छा अवसर प्रदान करते है जिससे उनकी विभिन्न योग्यताएं बहार आती है। एसे जाग्रत बच्चें अपने विद्यालय का गौरव बढ़ाते हैं।

मैदान आपात स्थितियों में भी बहुत उपयोगी होते है। यदि पाठशालाओं में मैदान नहीं है, तो विद्यालय के प्राधिकारी को किसी पार्टी-प्लोट, बगीचे या फिर किसी खाली मैदान का प्रवाधान करना चाहिए, जिससे कि बच्चों कि सुरक्षा का आश्वासन रहे।

स्रोत:

· http://revenuedepartment.gujarat.gov.in/applications/content.asp?Content_Id=763&T itle_Id=195&language=G&SiteID=8

· http://www.indiatogether.org/2004/aug/edu-firesafe.htm

· http://findarticles.com/p/articles/mi_m1145/is_n4_v33/ai_20552693/

· http://www.medicinenet.com/script/main/art.asp?articlekey=118570

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

आपदा निवारण के अभिगम (अलार्प अभिगम)

कार्य या खेल के दौरान की जानेवाली क्रियाएं खतरनाक साबित हो सकती है। इसलिए हम स्वाभाविक तौर पर इन अप्रत्याशित अकस्मात या आपदाओं से बचने के लिए सावधानियां बरतते है। खतरा हर जगह होता है, मगर एक सवाल यह उठता है कि क्या किसी व्यक्ति को जान, संपत्ति या आर्थिक नुकसान की मात्रा शून्य न सही मगर न्यूनतम करने का प्रयास करने की आवश्यकता है या नहीं? अगर इस प्रश्न का जवाब हाँ है तो, किस प्रकार से और कितना प्रयास करने की जरूरत है।

इस संदर्भ में, कोई व्यक्ति अभिगमों के बारे में बात कर सकता है या ऐसी बूनियादी व्यवस्था की बात कर सकता है, जिसका उपयोग आपदा निवारण के अभिगमों को व्याख्यायित करने में किया जा सकता है। निम्नलिखित ऐसे कुछ अभिगम है:

. वाजिब तौर पर हो सके उतना कम (अलार्प)

. वाजिब तौर पर प्राप्त किया जा सकता हो उतना कम (अलारा)

. वाजिब तौर पर हो सके इतना व्यवहार्य (सफार्प)

. और भी हो सकते हैं

इस पोस्ट में हम अलार्प के बारे में चर्चा करेंगे। अलार्प का मतलब वाजिब तौर पर हो सके उतना कम करना’ । प्राप्य श्रेष्ठ प्रणाली और मानकों का उपयोग करके आपत्ति में जितना संभव हो सके उतनी कटौती करने के अभिगम को अलार्प कह सकते है। यहां श्रेष्ठ प्रणाली’ का मतलब व्यवहार्य पर्यावरणीय परिस्थितियों में उपलब्ध श्रेष्ठ प्रौद्योगिकी को कहा जा सकता है। ज्यादा समझ के लिए नोल की साईट देख सकते है। और निम्ननिर्दिष्ट आकृति भी देखें।

अलार्प की व्याख्या के लिए एच. एस. सी भी देखें, और यह भी देखें की वह कैसे बनी। एडवर्ड विरुद्ध नेशनल कोल बोर्ड, १९४९ केस के आधार पर १९७४ में अधिनियम बना। यात्रा के दौरान रास्ते का एक हिस्सा तूट जाने की वजह से एडवर्ड का जानलेवा अकस्मात हुआ। सेफ्टी हेल्थ एन्वायर्नमेन्ट लि. के ब्लोग में उपरोक्त घटना का उल्लेख किया गया है, जहां पर अकस्मात हुआ था उन हिस्सों के रस्ते में लकड़े का आधार नहीं था, उसे छोड़कर बाकी के हिस्सों में आधार योग्य था। नेशनल कोल बोर्ड के जज लोर्ड एस्क्विथ ने निर्णय लिया कि रास्ते के इस हिस्से के सिवाय बाकी के हिस्से में मरम्मत की आवश्यकता नहीं थी। अपील कोर्ट ने बाद में यह निर्णय लिया कि अगर परिणाम’ और ‘खतरे का प्रमाण कम हो और खतरे में कटौति करने में ज़रूरी ‘कदम की कीमत ज़्यादा हो, तो उस कीमत को चुकाना गेरवाजिब होगा। ब्रिटन के अधिनियम (कार्य इत्यादी स्थलों स्वास्थ्य एवं सुरक्षा अधिनियम १९७४) ने बाद में अलार्प को व्याख्याइत किया और कार्य करने के स्थलों पर तमाम उपकरण और प्रणाली सलामत हों और स्वास्थ्य या जीवन के लिये जोखिमरूप न हो, यह सूनिश्चित किया।

आर्थिक अर्थ में, अलार्प किमत-लाभ पर आधारित खतरे की कटौति पर निर्भर करता है, जिसमें लाभ कीमत से ज़्यादा होना चाहिए।



आकृति: एक लाक्षणिक आपदा निवारण अभिगम डायाग्राम

इसलिए वह जोखिम और लाभ को संतुलित करनेवाली श्रेष्ट सामान्य प्रणाली है। अलार्प अन्य देशों में ब्रिटन के जैसे उपयोग में नहीं लिया जाता, क्योंकि उसका स्थानिक संस्कृति के आधार पर अर्थघटन होती है। अलारा और स्फैर्प जैसे अन्य भी अभिगम है जिनकी नोंध ली जानी चाहिए।

अन्य संदर्भ स्रोत एवं लिंक्स:

शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010

भारतीय उपमहाद्वीप में भूकंप का खतरा - भारत के भूकंपी क्षेत्र का नक्शा और उसके क्षेत्र का कार्यान्वयन

यह स्थापित है की देश की लगभग ६०% आबादी पर भूकंप का सीधा खतरा मंडरा रहा है। वर्तमान में विश्व की जनसंख्या में से लगभग २०% आबादी उपमहाद्वीप में रहती है, और इस आबादी में हर दस सालों में १०% से १५% की वृद्धि दर हैइंटरनेट लिंक (विकिपीडिया) देखें। पिछले ६० वर्षों में भारत की जनसंख्या में हुई वृद्धि के लिए नीचे दी गई छवि देखें। यह छवि उपमहाद्वीप में तुलनात्मक जनसंख्या की वृद्धि दर्शाता है।


भारत की जनसंख्या में वृद्धि (स्रोत : गूगल वर्ल्डबैंक सूचक)




भारतीय उपमहाद्वीप की जनसंख्या में वृद्धि (स्रोत : गूगल वर्ल्डबैंक सूचक)

जनसंख्या में यह वृद्धि और उससे सबंधित बांधकाम की संरचनाओं की गुणवत्ता के सवाल की वजह से जो जोखम है, उस पर एक समानांतर तर्क किया जा सकता है, कि क्या वास्तव में दक्षिण एशिया में बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं में परिस्थतियाँ क्या इतनी बुरी है?

आंकड़ों में या विवादों में उलझना और उनमें खो जाना सरल है। या फिर क्षेत्रीय नक़्शे को उम्मीद से देखें। इस ब्लॉग पोस्ट की प्रेरणा भारत के भूकंप क्षेत्र के नक़शे से मिली है। संकटपूर्ण इलाके (ज़ोन ५) लाल रंग में देखे जा सकते हैं, जिससे वे जल्दी नजर आ सकते है। छवि से पता चलता है कि ज़ोन ५ ज़ोन २ से ज्यादा खतरनाक है। उदाहरण के तौर पर लाल रंग सब का ध्यान आकर्षित करता है और ऐसे में हर ज़ोनिंग को कार्यान्वयन में भी अच्छी तरह से प्रयोग किया जा सकता है। और उसमें एक तथ्य भी प्रतिबिंबित होता है कि भारत के भूकंप नकशे में अब सिर्फ चार क्षेत्र है| यह सरलीकरण २००१ के गुजरात के दुर्भाग्यपूर्ण भूकंप के पश्चात भारत की विशाल बहुलता के संदर्भ को ध्यान में रख कर किया गया था। भारतीय मानक ब्यूरो और उसके साथ डॉ. आर्या और अन्य वरिष्ठ निष्णात तथा अन्य वैज्ञानिक देश में भूकंप और उससे संबंधित प्राकृतिक आपदाओं से जुझने जैसे जबरदस्त कठिन मुद्दे पर दृढ एवं बौद्धिक कार्य कर रहे हैं


भारत देश में भूकंप ज़ोन

गुगल इमेज में से। मूल स्रोत:: भारतीय मानक ब्यूरो

ऐसी भी दलील की जा सकती है कि आने वाले सालों में ऐसे कार्यान्वयन को भ्रूपुष्ट, राजकीय संकल्प, तकनिकी क्षमताएं तथा वृद्धि-विकासलक्षी मुद्दों जैसे बडे कारण चुनौती देते रहेंगे। इसके अलावा आप लाल हिस्सों का चयन कर सकतें है जहां अत्यंत ज़रूरी कार्य की और आवश्यकता है| उत्तरपूर्वीय राज्यों जैसे - हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल और बिहार को स्पष्टरूप से देख सकते है। उपमहाद्वीप में कश्मीर (२००५) और कच्छ (२००१) में हुई विनाशकारी घटनाएं इसके उदाहरण है। शायद इन राज्यों के लिए उनकी अग्रता के लिए एक स्वतंत्र किन्तु एक संबंधित रूपरेखा का आधार हो सकता है

इन तथाकथित मुश्किल वास्तविकता के सामने हमारे बीच एक मजबूत संकलन इस ‘टाइम बोम्ब’ को टालने के लिए अत्याधिक जरूरी है। साल २००४, एक सुंदर पर्वतीय शहर शिमला (क्षेत्र ) में एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ मीटिंग में उन्होंने कहा - ‘‘हम एक टाइम बोम्ब पर बैठे हैं।" शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी है और लाल रंगवाले विस्तार में है।

उपयोगी साधन

किसी भी देश कि पछिले ५० साल कि जनसँख्या को देखने के लिए गूगल और वर्ल्ड बैंक में खोजे|