सोमवार, 19 दिसंबर 2011

१८, सितम्बर २०११ के भूकंप के बाद की सिक्किम यात्रा

मेरी सिक्किम की दूसरी यात्रा इस समय राज्य के पाटनगर गंगटोक तक सीमित थी| सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य पिछली मुलाकात के दौरान निश्चित की हुई क्षतिग्रस्त पाठशालामें पुनर्वासन प्रारंभ करना था| यह हमारी पाठशाला सलामती की दीर्घकालिक कार्यसूचि का एक हिस्सा है,जहाँ हम पाठशालाओ के पुननिर्माण द्वारा नीचे दिए गए विषयो पर ध्यान दे रहे है|

१. मौजूदा पाठशालाओ की इमारतों को मजबूत बनाना

२. पाठशाला इमारतों में सलामती और अभिगम्यता के विचारो को प्रस्तुत करना और उसको एकीकृत करना

३. स्थानीय सरकार सहित विविध उपयोगकर्ता समूहों के लिए प्रचार कार्यक्रमों का आयोजन करना

प्रारंभ में हमने ल्यूम्सी जुनियर पाठशाला में हमारा कार्य शुरू किया था जो गंगटोक के शहरी विस्तार की हद मे स्थित है उसके दो कक्षागृह को नुकशान हुआ था| विचार केवल पाठशाला की ईमारत की मरम्मत करना और मजबूती बढ़ाना नहीं था, पर मिस्त्रियो के रेट्रोफिटींग तालीम की तक का उपयोग करना था| मैंने और रहेमान ने ( सिड्स टीम) इंटरव्यू और विचार विमर्श करने के बाद, साईट से तसवीरे और मापन सहित महत्वपूर्ण जानकारी इकठ्ठा की थी|

मेरी प्रथम यात्रा के दौरान तेजी से किये गए द्रश्य सर्वेक्षण और सिड्स की टीम के सदस्यो की संबंधित यात्राओ ने, इस पाठशाला को तय करने में सहायता की थी| ल्यूम्सी पाठशाला का प्रवेश योग्यता विभाग,पाठशाला और अन्य क्षेत्र को मुलाकात और बातचीत करने के लिए सर्वश्रेष्ठ है| फ़िलहाल, हम लोग छोटी सी टीम बनाकर हमारी जूनियर पाठशाला के कार्य का मार्च २०१२ के अंत तक का संचालन किया है| सिड्स के वेतन दर पर राखी और डी.ए. में से दो मजदूर थोड़े समय के बाद हमारे साथ शामिल होने वाले है|

ल्यूम्सी पाठशाला की तसवीरे यहाँ उपलब्ध है|

Lumsey Junior High School (Link to Picasa album)


इसके अलावा, में अन्य संस्थाओ द्वारा कि गई हुई भूकंप के बाद की गतिविधियों पर ध्यान देने का प्रयास कर रहा था||समाचार रिपोर्ट्स और साथियों की चर्चा से यह जानने को मिला है कि प्रशासन और नागरिक समाज प्रधानमंत्री, मुख्य मंत्री और अन्य अनुदान के बड़े धन का इंतजार कर रहे है| मुझे हर एक स्तर पर भूकंप प्रतिक्रिया के बारे में दिलचस्प वाद विवाद देखने को मिले जो राज्य को भविष्य में अपनाने चाहिए| बैठक और सम्मेलनों में उपविधियो और बुनियादी सुविधाओ सुविधाओ के प्रवधानीकरण में सुधार के उद्देश्य की चर्चा भी सुनाई देती थी|

सिक्किम ६००,००० जनसंख्या के साथ सुसंगठित समाज है| राज्य में सभी लोग भूकंप के बाद के परिणाम की स्थिति से परिचित है,और उनमें एक दुसरे के लिए सहानुभूति है|शहर जैसे कि, चुंगथांग में घर मालिको को भारी नुकशान सहन करना पड़ा था| सरकार द्वारा पुनर्वासन के लिए क्षतिपूर्ति के एक सुखद अनुग्रह राशि के रूप में,इस किस्से में ५०.००० रुपये तर्कसंगत काफी नहीं है|

यह एक दुर्भाग्य की बात है कि भारत के सबसे समृद्ध राज्यों में से एक सिक्किम उसके लोगो को ईमारत सुरक्षा के प्रति जागरूकता और निर्माण तकनीक के रूप में कोई भी तकनिकी मदद के लिए तैयार नहीं है| और/अथवा परामर्श,जो उनके जीवन और जीवनशैली में आये हुए भारी विघटन का सामना करने में मदद कर सके वो जरुरी है - वक्त की यही आवश्यकता है|

***

द्वारा लिखित : चंद्रा भाकुनी

जाँच और समीक्षा : प्रतुल आहूजा,श्रुति नायर,स्मृति सारस्वत

सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

सिक्किम,भारत भूकंप के लिए इंजीनियरिंग पाठ (तीव्रता ६.९)

हाल में १८सितम्बर के भूकंप के बाद मेरी सिक्किम की यात्रा ख़त्म हुई,यात्रा के कुछ लक्ष्य थे जो निम्नलिखित है:

१.क्षेत्र(प्रदेश) में बिल्डिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर की क्षति को समजना|

२.इस घटना का असर समझने के लिए पाठशाला की और दूसरी संस्थाओ की बिल्डिंग की मुलाकात करना|

३.क्षेत्र में दुर्घटना प्रतिक्रिया के तंत्र का निरिक्षण करना|

विस्तृत रिपोर्ट के लिए लिंक क्लिक करे|


मेरे फिल्ड के अनुभव और यात्रा के दौरान वहां के लोगो से हुई बातचीत के आधार पर थोड़े निष्कर्ष और सिफारिश थी जो निम्नलिखित है|

१.बडी इंजीनियरिंग कंपनिया, गंगटोक में विश्वविद्यालयों, और व्यक्तिगत स्तर पर सिक्किम का काफी हद तक अध्ययन किया गया है| उनकी विशेषज्ञता का उपयोग सुरक्षा और बुनियादी ढांचे के सुधार के लिए किया जाना चाहिए|

२.बुरी तरह से प्रभावित चुंगथांग के शहरीकरण व्यवस्थापन (उपयोग और सुविधाओ) के लिए ये भूकंप एक अवसर दिखाई देता है|

३.पारंपरिक भवन/घर (जिसको एकरा बोलते है) के निर्माण ने भूकंप के सामने अच्छा प्रदर्शन किया है,और उनमे काम क्षति हुई है|इस निर्माण को प्रोत्साहित करना चाहिए,और इस क्षेत्र में आराम से नयेपन के साथ सुरक्षित घरो घरो का निर्माण किया जा सकता है|

४.चुंगथांग में नुकसान ,घर मालिको की मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों का कारण है विशेष रूप से जिसने भारी निवेश किया है;और तकनिकी एवं मानसिक परामर्श एक तत्काल जरुरत है|

५.पाठशालाओ में नुकसान की वजह से बच्चो में एक भय का माहोल है | इस भय की ओर देखने से बेहतर है की भूकंप को समझने के लिए अवसर पैदा किये जाये |

६.सिक्किम एक अवसर है, जो अब सामूहिक शासन प्रणाली के एक उदाहरण के रूप में दिखाया जा सकता है, ना की सिर्फ सुरक्षा की दृष्टि से लेकिन विकास की दृष्टि से भी उतर भारत-पूर्व के उपमहाद्वीप को जरुरत है |


[आभार के साथ]

श्री चन्द्र भाकुनी, स्ट्रकचरल इंजीनयर, क्वेकस्कूल कन्सल्टिंग

मनू और सीड्स की दिल्ली टीम, श्रीमती रिंकू वढेरा स्थानीय डी.ओ.यु यूनिट से, श्री प्रशांत प्रधान और उनकी आर्कीटेक्ट की टीम सिक्किम से, टी शेरिंग (स्कूल शिक्षक), सोहेल दा (संकाय, सिक्किम युनिवर्सिटी), कर्नल वढेरा, कर्नल विशाल और क्वेकस्कूल टीम और यात्रा के दौरान मिले सभी मित्र का तहे दिल से आभार|

शनिवार, 23 जुलाई 2011

सिविल संरचना एन्जिनीरों के कुछ भूकम्पी स्पर्शक


तस्वीरें. भारत में ठेठ प्रबलित कंक्रीट चिनाई वाली इमारतें


पृथ्वी व उसकी सतह में एक निरंतर कम्पन हमेशा रहती है| जब तक कि यह कम्पन बड़े स्तर की हो, जोकि भूकंप जैसी घटनाओ के दौरान पैदा होती हों, हम इन्हें महसूस नही कर पातें हैं| विशेषज्ञ/वैज्ञानिक इन भूकंपीय कम्पन को समझने के लिए इन कंपन को तरंगो के रूप में वर्गीकृत करतें हैं| यह कहा जा सकता है कि यह तरंगे भूकंप के दौरान पृथ्वी के केंद्र से उत्तपन हो कर हर दिशा में बढ़ने लगतीं हैं, और इन्हें सिस्मिक या फिर भुकम्पियन तरंगो के नाम से भी जाना जाता है| यह तरंगें दो प्रकार में वर्गीकृत की जा सकतीं हैं- ) शारीरिक तरंग और ) सतह तरंग | जबकि 'शारीरिक तरंग' पृथ्वी के शरीर को माध्यम बनाकर चलतीं हैं, वहीं 'सतह तरंग' थोड़ा लम्बा मार्ग लेती हैं| 'सतह तरंग' पहले पृथ्वी के सबसे नज़दीक सतह तक अपना मार्ग बनातीं हैं, और उसके पश्चात धरती की सतह पर चलतीं हैं| आप कुछ सरल शैक्षिक साइट देख सकते हैं जो इन भूकंप तरंगो को सरल रूप से समझाती हैं; वेबसाइट लिंक १, वेबसाइट|

संरचनात्मक इंजीनियरिंग व सिविल इंजीनियरिंग के विषय का सम्बन्ध इन तरंगो कि यात्रा और इनकी इमारतों पर इनके टकराव से होने वाले प्रभाव से सम्बंधित है|

***

पिछले एक साल में इतिहास ने कुछ दुर्भाग्यपूर्ण भूकंप और उसके बाद के झटको को देखा है| न्यूजीलैंड और जापान इस कारण चर्चा में रहे और पिछले साल चिली में भी काफी बड़े स्तर पर नुक्सान दर्ज किया गया है| आयें देखें कि सिविल/स्ट्रक्चरल इंजीनियरों का इस विषय में क्या कहना है-

न्यूजीलैंड ( २२ फरवरी २०११)

रोबेर्तो टी.लिओन , अध्यक्ष, स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग संसथान, ए.एस.सी.ई. (जो कि अमेरिकी सिविल इंजिनियरो की एक प्रख्यात संसथान है) का एक दिलचस्प ब्लॉग है जिसमें उन्होंने अपने क्राइस्टचर्च, न्यूजीलैंड में मौजूद होने पर एक व्यक्तिगत विवरण दिया है, जब वहां अकस्मात दूसरा भूकंप आया था| यह पूरा ब्लॉग बहुत दिलचस्प है, जंहा एक हिस्से में उन्होंने चिली में हुई घटना के साथ इसकी तुलना की है-

यह अनुभव मेरे लिए काफी अजीब था, क्योंकि मेरी हाल की यादें चिली में पिछले साल आये भूकंप कि है| चिली के भूकंप धीरे धीरे निर्मित होते है और काफी लम्बे समय तक रहते है| पर यह अलग था, इसमें अचानक - हिंसक झटके मजबूत ऊर्ध्वाधर के साथ महसूस किये गए, और यह करीब १५ सेकंड तक चले|

जापान (११ मार्च २०११)

बालाजी, एक मित्र और स्ट्रक्चरल इंजिनियर है, जो अपने टोक्यो कार्यालय, जो कि एक दस मंजिला ईमारत है, की चौथी मंजिल पर थे जब वहां भूकंप आया| बाला के कार्यालय तक सुनामी नहीं पहुँच सका क्योंकि वह शहर के बीच में स्थित है| कुछ दिनों बाद उन्होंने मझे स्काइप पर बताया कि उन्हें कैसा अनुभव हुआ जब भूकम्पी शारीरिक तरंगो ने उन्हें अचानक हिलाकर रख दिया था, और तत्पश्चात उन्होंने 'सतह तरंग' के आने का इंतजार किया क्योंकि अब सतह तरंग के जल्द ही आने कि सम्भावना थी| अगले ही क्षण उन्होंने अपने सहकर्मी को पीठ के बल दीवार से टकराते हुए देखा- दोनों सुरक्षित हैं| यह इमारत उनके सहकर्मियों ने सुरक्षा को ध्यान में रख कर डिज़ाइन की थी|

***

दस साल पहले मैने गुजरात में आये भूकंप (२६ जनवरी २००१) को खुद महसूस किया था जो लगभग दो मिनट तक चला था| मैं नींद में से जाग उठा और मैं जिस दो मंजिला इमारत में रहता था, जो स्टील युक्त सीमेंट कंक्रीट से सिमित चिनाई के काम से बनी हैं, ने भूकंप के झटकों को बखूबी सहा| इस तरह की इमारतें जो भारत भर मै संस्थागत भवनों का एक प्रारूपि डिज़ाइन है, एक ईमारत की गतिविधि व लय को ध्यान में रखते हुए निर्मित हैं, और यह एक कारण है कि भूकंप के झटकों को सहने की क्षमता रखती है| कई इमारतें जो केवल चारदीवारी को सोच कर बनाई गई थी वो इतनी भाग्यशाली नही थी, और इस तरह की कई इमारत ढह भी गई थीं| मेरे एक संरचनात्मक इंजिनियर सहकर्मी, जो उस समय छात्र थे, ने इस अव्यवस्था के बीच एक समझदारी की बात कही थी-

... या तो तुम इमारत इतनी कड़ी बनाओ की उसे कुछ ना हो, या उसे इतना लचीला बनाओ की उसे कंही से भी मोड़ा या मरोड़ा जा सके, या फिर उसके जोड़ो को इतना लचीला बनाओ की चाहे कितनी भी लम्बी अवधि का या तीव्रता का भूकंप आये, उसके जोड़ कभी ना खुले|

***


वेबसाइट १: http://www.matter.org.uk/schools/content/seismology/pandswaves.html

वेबसाइट २: http://earthquake.usgs.gov/learn/topics/?topicID=६३