
पृथ्वी व उसकी सतह में एक निरंतर कम्पन हमेशा रहती है| जब तक कि यह कम्पन बड़े स्तर की न हो, जोकि भूकंप जैसी घटनाओ के दौरान पैदा होती हों, हम इन्हें महसूस नही कर पातें हैं| विशेषज्ञ/वैज्ञानिक इन भूकंपीय कम्पन को समझने के लिए इन कंपन को तरंगो के रूप में वर्गीकृत करतें हैं| यह कहा जा सकता है कि यह तरंगे भूकंप के दौरान पृथ्वी के केंद्र से उत्तपन हो कर हर दिशा में बढ़ने लगतीं हैं, और इन्हें सिस्मिक या फिर भुकम्पियन तरंगो के नाम से भी जाना जाता है| यह तरंगें दो प्रकार में वर्गीकृत की जा सकतीं हैं- १) शारीरिक तरंग और २) सतह तरंग | जबकि 'शारीरिक तरंग' पृथ्वी के शरीर को माध्यम बनाकर चलतीं हैं, वहीं 'सतह तरंग' थोड़ा लम्बा मार्ग लेती हैं| 'सतह तरंग' पहले पृथ्वी के सबसे नज़दीक सतह तक अपना मार्ग बनातीं हैं, और उसके पश्चात धरती की सतह पर चलतीं हैं| आप कुछ सरल शैक्षिक साइट देख सकते हैं जो इन भूकंप तरंगो को सरल रूप से समझाती हैं; वेबसाइट लिंक १, वेबसाइट २|
संरचनात्मक इंजीनियरिंग व सिविल इंजीनियरिंग के विषय का सम्बन्ध इन तरंगो कि यात्रा और इनकी इमारतों पर इनके टकराव से होने वाले प्रभाव से सम्बंधित है|
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पिछले एक साल में इतिहास ने कुछ दुर्भाग्यपूर्ण भूकंप और उसके बाद के झटको को देखा है| न्यूजीलैंड और जापान इस कारण चर्चा में रहे और पिछले साल चिली में भी काफी बड़े स्तर पर नुक्सान दर्ज किया गया है| आयें देखें कि सिविल/स्ट्रक्चरल इंजीनियरों का इस विषय में क्या कहना है-
न्यूजीलैंड ( २२ फरवरी २०११)
रोबेर्तो टी.लिओन , अध्यक्ष, स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग संसथान, ए.एस.सी.ई. (जो कि अमेरिकी सिविल इंजिनियरो की एक प्रख्यात संसथान है) का एक दिलचस्प ब्लॉग है जिसमें उन्होंने अपने क्राइस्टचर्च, न्यूजीलैंड में मौजूद होने पर एक व्यक्तिगत विवरण दिया है, जब वहां अकस्मात दूसरा भूकंप आया था| यह पूरा ब्लॉग बहुत दिलचस्प है, जंहा एक हिस्से में उन्होंने चिली में हुई घटना के साथ इसकी तुलना की है-
यह अनुभव मेरे लिए काफी अजीब था, क्योंकि मेरी हाल की यादें चिली में पिछले साल आये भूकंप कि है| चिली के भूकंप धीरे धीरे निर्मित होते है और काफी लम्बे समय तक रहते है| पर यह अलग था, इसमें अचानक ३- ४ हिंसक झटके मजबूत ऊर्ध्वाधर के साथ महसूस किये गए, और यह करीब १५ सेकंड तक चले|
जापान (११ मार्च २०११)
बालाजी, एक मित्र और स्ट्रक्चरल इंजिनियर है, जो अपने टोक्यो कार्यालय, जो कि एक दस मंजिला ईमारत है, की चौथी मंजिल पर थे जब वहां भूकंप आया| बाला के कार्यालय तक सुनामी नहीं पहुँच सका क्योंकि वह शहर के बीच में स्थित है| कुछ दिनों बाद उन्होंने मझे स्काइप पर बताया कि उन्हें कैसा अनुभव हुआ जब भूकम्पी शारीरिक तरंगो ने उन्हें अचानक हिलाकर रख दिया था, और तत्पश्चात उन्होंने 'सतह तरंग' के आने का इंतजार किया क्योंकि अब सतह तरंग के जल्द ही आने कि सम्भावना थी| अगले ही क्षण उन्होंने अपने सहकर्मी को पीठ के बल दीवार से टकराते हुए देखा- दोनों सुरक्षित हैं| यह इमारत उनके सहकर्मियों ने सुरक्षा को ध्यान में रख कर डिज़ाइन की थी|
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दस साल पहले मैने गुजरात में आये भूकंप (२६ जनवरी २००१) को खुद महसूस किया था जो लगभग दो मिनट तक चला था| मैं नींद में से जाग उठा और मैं जिस दो मंजिला इमारत में रहता था, जो स्टील युक्त सीमेंट कंक्रीट से सिमित चिनाई के काम से बनी हैं, ने भूकंप के झटकों को बखूबी सहा| इस तरह की इमारतें जो भारत भर मै संस्थागत भवनों का एक प्रारूपि डिज़ाइन है, एक ईमारत की गतिविधि व लय को ध्यान में रखते हुए निर्मित हैं, और यह एक कारण है कि भूकंप के झटकों को सहने की क्षमता रखती है| कई इमारतें जो केवल चारदीवारी को सोच कर बनाई गई थी वो इतनी भाग्यशाली नही थी, और इस तरह की कई इमारत ढह भी गई थीं| मेरे एक संरचनात्मक इंजिनियर सहकर्मी, जो उस समय छात्र थे, ने इस अव्यवस्था के बीच एक समझदारी की बात कही थी-
... या तो तुम इमारत इतनी कड़ी बनाओ की उसे कुछ ना हो, या उसे इतना लचीला बनाओ की उसे कंही से भी मोड़ा या मरोड़ा जा सके, या फिर उसके जोड़ो को इतना लचीला बनाओ की चाहे कितनी भी लम्बी अवधि का या तीव्रता का भूकंप आये, उसके जोड़ कभी ना खुले|
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वेबसाइट १: http://www.matter.org.uk/schools/content/seismology/pandswaves.html
वेबसाइट २: http://earthquake.usgs.gov/learn/topics/?topicID=६३
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