शनिवार, 26 मई 2012

केन्सविल में डॉक्टर भावेश के निवास की संरचनात्मक प्रणाली और प्रगति पर एक ध्यान

केन्सविल कार्यस्थल नलसरोवर पक्षी अभयारण्य के विशाल दलदल से थोडा पहले एक प्राकृतिक जल निकासी मार्ग पर स्थित है, और इसलिए उसका पानी कोष्टक उच्च है| यह भूवैज्ञानिक/ भूआकार विज्ञान गुण के कारण नींव की जमीन का प्रकार अधिक रूप से कांप जैसी रेत जैसा है| जमीन का लगभग पचहतर प्रतिशत (७५%) हिस्सा  दानेदार है और बाकी के हिस्से में मिट्टी बेहद चीकनी और संकोचित है, बोलचाल के शब्दों में इसको काले कपास की जमीन से भी जाना जाता है| इस जमीन की प्रकृति ऐसी है कि उसकी भार सहन करने की क्षमता औसत है और इसके आलावा मिट्टी का कटाव भी ज्यादा है| जमीन की वर्तमान स्थिति और मौजूदा भार पर से हमको गोलाकार चिनाई की नींव पर फेरोसिमेन्ट का पतला आवरण और उस पर परिदृश्य घास जैसी डिज़ाइन पसंद करने की जरुरत पड़ी| आशय यह था कि नींवे और अधिरचना के आवरण के द्वारा स्वतंत्र तरीके से पर्याप्त अखंडता पा सके, जो बाद में जमीन में होने वाली विभिन्नता के सामने टिक पाए| ज्यादा जानकारी के लिए नीचे दिया गया हुआ रेखाचित्र देखे|

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इस नींव की चिनाई का निर्माण पूर्ण हो चूका है और अभी तल प्लिन्थ तैयार हो रही है| देश के अन्य भागो की तरह, योग्य कार्यबल की उपलब्धता एक चिंता का विषय है, और कार्यस्थल की दूरी ने हमारे कार्य को धीरा कर रखा है| हालांकि, हमारे ठेकेदार नीरव और दक्षेश ने ईंट के चिनाई काम और खुदाई काम में कुशल हो ऐसे स्थानिक कार्यदल को ढूंढ़ निकाला था| खुदाई पूर्ण होने के बाद जल्द ही कार्य शुरू करने से पहले और निष्पादन के दौरान उन्होंने ईंटकी चिनाई के कारीगरों से लगातार बातचीत करके इच्छित गुणवत्ता सुनिश्चित की| तस्वीरे देखने के लिए क्लिक करे|


वर्तमान में फेरोसिमेन्ट के आवरण के निर्माण के लिए सामग्री जुटाव चल रहा है; और जैसे काम आगे बढेगा ऐसे हम आपको जानकारी देते रहेंगे| कृपया मुलाकात जारी रखे|


* काली मिट्टी बहोत चीकनी और संकोचित मिट्टी जैसी होती है|








शनिवार, 5 मई 2012

१८ सितम्बर-२०११ भूकंप के अद्यतन (अद्यतन: २९ अप्रैल २०१२)

सांगखोला स्कूल की प्रगति धीरे पर मजबूत है| यह धीमी प्रगति ज्यादातर रिइन्फोर्सड सिमेन्ट कोंक्रिट (भारत में आर.सी.सी के नाम से जाना जाता है|)  नाम की सामग्री  से काम करने वाले  लोगो के उपलब्ध होने की वजह से है| शिक्षा विभाग ने सिर्फ आर.सी.सी की मदद से ही नई इमारातो के निर्माण की इच्छा ज़ाहिर की है, और इस काम को  हम जल्द से जल्द पूरा करे उसके लिए उत्सुक है| यह अच्छी तरह से समझ में आ रहा है और स्थापित है कि इस भूकंप के दौरान हुए नुकसान मुख्य रूप से ढीली मिट्टी, प्रति धारण दीवारे , अपर्याप्त डिज़ाइन और विशेष रूप से आर.सी.सी के जोड़ो के कारण था|  कई मामलो में मिट्टी को ठीक से नहीं जमा किया गया था| थोड़े मामलो में जमीन को समतल बनाने के लिए दूसरी जगह से मिट्टी लेकर भरा हुआ था और अपूर्ण  प्रतिधारण दिवारे थी|  अपर्याप्त ढीले संस्थापक जमीन के कारण संरचनाओ को बड़े झटकों से गुजरना पड़ा और सिक्किम की इमारतों में अच्छी गुणवता के निर्माण होने के बावजूद भी राज्य में ज्यादा नुकसान पाया गया| डिज़ाइन पे अपर्याप्त ध्यान भी इस भूकंप में हुए नुकसान का अन्य कारण था|
अब, एक संशोधित परियोजना की योजना के अनुसार नींव का काम मई महीने के मध्य तक पूरा हो जाएगा और अन्य संरचनात्मक काम की परिकल्पना जून महीने के मध्य तक हो जाए  ऐसी हम उम्मीद करते है| नींव के काम की तस्वीरे यहाँ देखे (लिंक) | यहाँ आर.सी.सी स्तंभ के लिए उच्च ठोस नींव के बनाने की तैयारी की जा रही है|
हम ठेकेदार की कार्यक्षमता को तकनिकी और प्रबंधिकीय दोनों क्षेत्रो में समर्थ बनाने के लिये देख रहे है| इसके लिये हमें और ज्यादा अनुभवी इंजिनियर टीम की जरुरत पड़ी| सीड्स के नेतृत्व में से राकेश है उनके साथ गुज़रात के पाटनका गाँव से कारीगर रमेश वहाँ पर पुनःनिर्माण में मदद के लिये है|
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इसके अलावा, पूर्वी जिले में क्षतिग्रस्त तीन स्कूल के परिसर में इमारतों के पुनःनिर्माण के कार्य की तैयारियाँ चल रही है| इसके अलावा हम भविष्य में होने वाली अत्यधिक घटनाओ के समय स्कूल परिसर में जीवन सलामती के पहलू, स्कूल परिसर में स्थानीय पर्यावरण बुनियादी सुविधा के निर्माण को सुधरने के लिये निर्माण और समुदाय की भागीदारी को शामिल करने की कोशिश कर रहे है|

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

सिक्किम अद्यतन - १८ सितम्बर २०११ भूकंप

थोड़े व्यवस्थापक अडचनो के कारण हमने हमारी चुनी हुई स्कूल को बदल दिया| इस बार थोड़ी ज्यादा सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों के सर्वेक्षण के बाद हमने सांगखोला प्राथमिक शाला जो राज्यके पाटनगर गंगटोक से २० किलोमीटर पहले राष्ट्रीय धोरीमार्ग ३१- पर स्थित है उसे खोज शके|

सीड्स की टीम में राखी,रेहमान,हरजीत और रिंकू अथक रहकर सांगखोला स्कूल की इमारत के पुननिर्माण के लिए डिजाइन का काम कर रहे है|उद्देश्य केवल संरचना को पहले की तुलनामें सुरक्षित करने का ही नहीं,बल्कि वातावरण को और अधिक सीखने के लिए सहायक बनाने का भी है|

टीम स्थानीय गाँव की जनता से, पंचायत से, और विभिन्न सरकारी विभागों से विशेष रूप से एच.आर.डी.डी (राज्य शिक्षा विभाग) से नियमित रूप से परामर्श प्रक्रिया में है| यहाँ अनौपचारिक कार्यशालाए बहूत सफल रही है| नए स्कूल के निर्माण के लिए तैयार किये हुए डिजाइन विकल्प चित्रों को बाद में देखे|

जल्द ही,निर्माण का कार्य आगे बढे उसके बाद हम इंजीनियरों और मजदूरो के लिए सामुदायिक कार्यशालाओ और बातचीत सत्र का संचालन करने की स्थिति में होंगे|

राज्य की क्षतिग्रस्त सांगखोला स्कूल की तस्वीरे यहाँ नीचे पिकाशा एल्बम में देखने को मिलेंगे|

१२०२०४ क्षतिग्रस्त सांगखोला स्कूल

थोड़े डिजाइन विकल्प यहाँ नीचे पिकाशा एल्बम में देखने को मिलेंगे|

१२०२०४ सांगखोला के नई डिज़ाइन विकल्प


गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

हमारे हाल के कुछ कार्य


हालांकि भारत में क्वेकस्कूल का यह प्रथम वर्ष घरेलु माहौल में कठिन मालूम हुआ, वहाँ हमने कुछ उपयोगी सबक सीखा है जो यादगार है|काम चिंतनशील किया गया है,ज्यादातर मजबूत तथ्य यह है कि बार बार दुहराने वाला इंजीनियरिंग का प्रयास,चाहे कही बहार भी किया जाता है,तो परियोजना की लागत काफी कम करने में मदद हो सकती है| यह प्रयासों डिजाइन और इसके कार्यान्वयन में भी नेतृत्व दे सकते है,उसी समय हमने हमारी परियोजनाओ में अवधि के स्थायित्व को समझने की कोशिश की|


हमने हाल ही में हमारे ग्राहकों के लिए किये गए कार्य आधारित कुछ निष्कर्ष निकले थे, इनमें से यह तीन दिलचस्प थे|
१. सामख्याली, गुजरात में एक सौर संयंत्र की नींव के लिए डिजाइन (क्लिक)
२. एक बांस संरचना नागपुर, महाराष्ट्र (क्लिक) के डिजाइन विश्लेषण
3. अहमदाबाद शहर में एक जमीन से अधिक दस मंजिला संरचना के मूल्य इंजीनियरिंग, विश्लेषण, गुजरात (क्लिक)


सामख्याली एक आगामी बिजली उत्पादन संयंत्र परियोजना है जिसको सौर ऊर्जा पर चलाया जायेगा| उसके महत्वपूर्ण घटकों में से एक संयंत्र की संरचनात्मक नींव है जिस पर इसकी पैनले और असेंबली लगेगी| परियोजना हमारे लिए भारत और अमेरिका के मिकेनिकल और इंस्ट्रूमेंन्टेशन इंजीनियरों के साथ काम करने का एक मौका था|वहाँ हमने एक टीम के रूपमें एक साथ छह हजार की संख्या के नींव यूनिटों के आकर को कम करने का काम किया,इसलिए उसकी लागत को भी कम कर सके|


हमने वन्डरग्रास के साथ एक पूरी तरह से अलग संरचनात्मक डिजाइन का व्यायाम किया वन्डरग्रास जिससे बांस की पंद्रह प्रजातियो में से एक,जो घरो के निर्माण में उपयोगी है जिसका नाम डेन्ड्रोकालामस स्ट्रिकट्स (अथवा डी-स्ट्रिकट्स)है उससे हमारा परिचय हुआ| हमने वन्डरग्रास के द्वारा बनाये हुए विशिष्ट आवास से इस बांस की संरचनात्मक पर्याप्त मात्रा का परिक्षण किया| हमने फिर से सीखा किग्रामीण क्षेत्र में महत्वपूर्ण अवसर और सरकारी नीतियां होने के बावजूद भी अनुसंधान और आवास सामग्री के रुपमे बांस के उपयोग को बढ़ावा देने में यह अभी भी पूरी तरह से सफल नहीं हुए है| इसका मुख्य कारण यह है की,शोधकर्ताओ और ईमारत चिकित्सको सहित ज्यादातर लोग बांस को गैर टिकाऊ और अप्रचलित सामग्री मानते है,और बड़े पैमाने पर घरके निर्माण होने के कारण वैकल्पिक सामग्री केरुपमे उसकी बहुमुखी प्रतिभा को अनदेखा किया जाता है| इस परियोजना की जानकारी इस लिंक (क्लिक ) पर उपलब्ध है|


दस मंजिला इमारत परियोजना के द्वारा हमने अहमदाबाद शहर की एक उच्च वृद्धि ईमारत का कम्प्यूटर आधारित ३-डी विश्लेषण का आयोजन किया| यह उच्च वृद्धि संरचना अतिरिक्त तन्य-शक्ति के लिए सीमेन्ट और एम्बेडेड स्टील से बना हुआ था जो इन सब सामग्रीयो में सबसे बहुमूल्य सामग्री है| इस प्रकार का निर्माण उसकी लचीलेपन और प्राथमिक सामग्री की वजह से लगभग सभी विकासशील देशो में देखने को मिलता है| इन्जिनियरिंग सुरक्षा सुनिश्चीत करने और लागत को कम करने का यह एक रास्ता है और यहाँ हमारा उद्देश्य 'मूल्य इन्जिनियरिंग दृष्टिकोण' से इस संरचना का विश्लेषण करना था इसलिए हम अपने मूल सामग्री की खपत की जाँच करके अपनी लागत कम कर सके| इस परियोजना की जानकारी को इस लिंक (क्लिक) से खोज कर सकते हो|


इन लघु परियोजनाओ का कार्य किया तब हमें यह महसूस हुआ कि हमने डिजाइन किये ईमारत की संरचना या हमने उपयोग कि हुई सामग्री चाहे कितनी भी हो, जो उसका बुद्धिपूर्वक इन्जिनियरिंग उपयोग किया जाये तो इससे लागत कम करने के आलावा टिकाऊपन के मुद्दे का भी हल निकालने में मदद हो सकती है,जो इस स्तर पे सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से योग्य है|